Friday 31 July 2020

कमल जोशी के कैमरे में कैद हिमालयी संस्कृति

कमल जोशी के कैमरे में कैद हिमालयी संस्कृति
विजय भट्ट, वरिष्ठ पत्रकार देहरादून

हिमालय केवल एक पहाड़ नहीं बल्कि संस्कृति और सभ्यता का उद्गम स्थल भी है। हिमालय केवल भारत, एशिया को ही नहीं बल्की पूरे विश्व की जलवायु को प्रभावित करता है। भारत के लिए हिमालय का महत्व और भी बढ़ जाता है। हिमालय न केवल भारत के उत्तर में एक सजग परहरी बनकर खड़ा है, बल्कि हिमालय की विशाल पर्वत शृंखलायें साइबेरियाई शीतल वायुराशियों को रोक कर भारतीय उपमहाद्वीप को जाड़ों में आधिक ठंडा होने से बचाती हैं। पुराणों में भी हिमालय का वर्णन किया गया है।
आज हम प्रसिद्ध फोटो जर्नलिस्ट कमल जोशी के बारे में जानेगे जिन्होंने हिमालयी संस्कृति और सभ्यता को न केवल अपने कैमरे में कैद किया, बल्कि उसे लोगों तक भी पहुंचाया। कमल जोशी भले ही आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी यादें हमेशा हम सबको एक प्रेरिणा देती रहेंगी। वो कमल जोशी ही थे जिन्होंने फोटोग्राफी को अपना फैशन बना दिया था और अपना सर्वस्व उस पर लगा दिया था। किसी भी घटनाक्रम को लिखने बोलने से अधिक प्रभावशाली तरीका है कि फोटोग्राफ के द्वारा उसे लोगों तक पहुंचाया जाए। वर्ष 2014 में जब मैं कोटद्वार में पत्रकारिता कर रहा था उस दौरान वरिष्ठ नागरिक मंच कोटद्वार की ओर से बालासौड़ में कमल जोशी को अपने कार्यक्रम में बुलाया गया था। जिसमें कमल जोशी ने अपनी पूरी जिंदगीभर की फोटोग्राफी को मॉनिटर से लोगों को दिखाया और उन फोटोग्राफ के बारे में जानकारी भी दी। मैं केवल समाचार एकत्रित करने गया था, लेकिन कमल जोशी की फोटोग्राफी और उनकी जानकारी मुझे वहां से जाने से रोक रही थी। कमल जोशी से मेरे पारिवारिक संबंध तो थे ही लेकिन जब भी टाइम मिलता मैं उन्हें घर पर बुला लेता। वरिष्ठ नागरिक मंच के कार्यक्रम में कमल जोशी द्वारा हिमालय के बारे में बताए गए कुछ अंश आज भी मुझे याद हैं, और वो तस्वीरें भी दिलों दिमाग में छाई हुई हैं। कमल जोशी के कार्यक्रम के कुछ अंश आपके सामने साझा कर रहा हूं। 
कार्यक्रम में कमल जोशी अपनी फोटो को मॉनिटर पर सलाइडों को चलाते हुए बता रहे थे।जिसमें उन्होंने बताया कि हिमालय केवल पहाड़ या दूर से दिखने वाला केवल बर्फ का एक विशाल घर नहीं बल्कि सभ्यता संस्कृति का उदगम स्थल भी है। हिमालय से विश्व की सबसे अधिक नदियां निकलती हैं, साथ ही पानी का सबसे बड़ा भंडार भी हिमलय ही है। लेकिन जलवायु परिवर्तन के कारण आज हिमालय में बड़े बदलाव आ रहे हैं। जिसमें उन्होंने गोमुख गलेश्यर, जम्मू कश्मीर, लदाख और नेपाल के हिमलाय की फोटो दिखाई। जिसमें ग्लेश्यर लगातार पीछे खिसक रहे हैं। इस जलवायु परिवर्तन का वहां के जीव जन्तुओं पर भी असर पड़ रहा है, वहां की वनस्पति पर भी असर हो रहा है। उन्होंने हिमायली नदियों के बारे में भी जानकारी दी। साथ ही हिमालय से नदियों के उद्गम के बारे में भी बताया। इसके साथ ही बताया कि जैसे ही हिमालय से नदियां आगे बढ़ी वैसे ही नदी किनारे एक सभ्यता और एक संस्कृति ने भी जन्म लिया।  लेकिन जैसे ही नदियां आगे बढ़ी संस्कृति और सभ्यता में भी अंतर आया। जैसे चमोली के अलकनंदा के किनारे बसे गांव या बद्रीनाथ क्षेत्र में बसे भोटिया जनजाति के लोग और उनकी संस्कृति और सभ्यता। वहां के लोग मुख्य रूप से भेड़ पालन करते हैं, खेती अधिक उच्च हिमालयी क्षेत्रों में नहीं होती है। इस लिए वे लोग छह माह बद्रीनाथ और छह माह के लिए निचले इलाकों में आ जाते हैं। उनकी संस्कृति देवता, रहन , सहन आदि सभी विशेष है। वे लोग भेड़ की ऊन से ही कपड़े बनाते हैं। भेड़ की ऊन से बनाया गया दोखा एक प्रकार का गाउन होता है, जिसे बाहर से पहना जाता है। इसे बारिश ठंड आदि से बचा जा सकता है। लेकिन जैसे हम नदी की तलहटी में उतरते हैं, तो वहां का रहन सहन भिन्न हो जाता है। वहां के लोग गांव में स्थाई रूप से निवास करते हैं। इससे और नीचे बढ़ने पर रहन-सहन आदि में फर्क आ जाता है। इस लिए हिमालयी राज्यों की संस्कृति और सभ्यता में आए बदलाव वहां के पर्यावरणीय कारणों से भी प्रभावित हुए हैं। लदाख में जानवरों से बोझा ले जाने के काम में लगाया जाता है। उन्होंने शिवालिक श्रेणी की हिमालयी चोटियों के बारे में बताया। साथ ही हिमालयी गांवों का दौरा कर वहां के लोगों की संस्कृति को अपने कैमरे में कैद किया। उन्होंने पहाड़ी ढलानों पर बुग्यालों, चोटियों मध्य हिमालय और नदी घाटी संस्कृति के बारे में भी जानकारी दी। साथ ही गंगा यमुना जैसी नदियों की महत्ता भी बताई। हिमालय को भारत, नेपाल और चीन में अलग-अलग नामों से जाना जाता है। लेकिन इस हिमालयी क्षेत्र में एक विशाल सभ्यता और संस्कृति ने जन्म लिया है। भारत में भी उत्तर से लेकर पूर्व तक कई हिमालयी राज्य हैं। इसलिए इस हिमलयी संस्कृति और सभ्यता के संरक्षण के लिए और हिमालय के संरक्षण और संवर्द्धन पर विश्व को सोचना होगा। उनके फोटोग्राफ में हिमालयी गाय चराने वाले बच्चे, सोने के आभूषणों पर वहां की संस्कृति की झलक दिखाने वाली महिलाएं और मजदूर, किसान की फोटो में वहां की संस्कृति झलती है। उन्होंने कई बार अपने साथियों के साथ गांवों की यात्राएं की। पिछले नंदा देवी राजजात पर उनका ब्लॉग हिमालय के उस पार भी रहती है हमारी अनुष्का बेहतरीन हिमालयी युवती की कहानी थी। लेकिन अब वो ब्लॉग भी उपलब्ध नहीं हो पाया। नंदा देवी राजजात हिमायल का एक महाकुंभ है, इसकी संस्कृति और सभ्यता को कमल जोशी ने अपने कैमरे में कैद किया था। इससे पहले उन्होंने मेरे साथ कोटद्वार बेस अस्पताल में अपना स्वस्थ्य परीक्षण कर कुछ दवाएं लेकर राजजात के लिए रवाना हुए थे। अब कमल नहीं उनकी फोटोग्राफी हमेशा हिमालयी राज्यों की संस्कृति और सभ्यता के बारे में हमे जानकारी देती रहेगी और आगे बढ़नी की प्रेरणा देती रहेगी।

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